Tuesday, May 9, 2017

कितनी काम आएगी ये कलाकारी, नेताजी?



इन दिनों आप महसूस करते होंगे कि देश की राजनीति अब टीवी सीरियल्स की तरह की होने लगी है। कभी समाजवादी पार्टी में बाप-बेटे की कलह एंटरटेनमेंट चैनलों को अवाक और लाजवाब कर देती है तो कभी एक प्रदेश की सरकार के मंत्री को पद से हटाए जाने के बाद परिदृश्य नाटकीय बन जाता है।
राजनीति को एक अजीब सा प्रफेशन कहें तो गलत नहीं होगा। इसमें हर पल कुछ न कुछ नाटकीय होता रहता है। अगर किसी गंभीर मुद्दे जैसे कि चुनाव आदि पर उठापटक न चल रही हो तो हमारे नेता नौटंकी पर उतर आते हैं। लांछन लगाने और कीचड़ उछालने की कला के बगैर तो मानो नेता खुद को साबित ही नहीं कर सकता। आजकल यही हो रहा है- जो जितना कीचड़ उछाल सकता है, अपने साथ साथ दूसरे की छीछालेदर कर सकता है, वही खुद को काबिल नेता साबित कर पा रहा है। यानी राजनीति में कॉम्पिटिशन इस कदर टफ हो चुका है कि नेताओं को हर तरह के काम करने पड़ रहे हैं।
इन दिनों फोटो अपॉरच्युनिटी यानी photo op का दौर चरम पर है। मोदी जी को इसका सूत्रधार कहा जा सकता है। उन्होंने झाड़ू उठाई तो चर्चा में आ गए। फिर उन्होंने फावड़ा उठाया तो मीडिया में छा गए। ऐसा लगा मानो मीडिया के मन को जो भाया, उसकी भनक मोदी जी को लग गई और दोनों का ही काम बन गया। उन्होंने जो राह दिखाई तो नेताओं को यह आइडिया क्लिक कर गया। अब वे भी अनोखे आइडियाज पर काम करने लगे ताकि मीडिया की सुर्खियों में आ सकें। मोदी जी नेताओं पर अपनी चुटकियों से चर्चा में बने रहते हैं और मीडिया को भी 'कुछ नया' के चक्कर में उनसे मसाले की आस रहती है। मोदी जी इस मामले में बेहतरीन मीडिया मैनेजर हैं।
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी परिवार में घमासान सामने आया तो भी वह मीडिया में छाए रहने का एक तरीका ही माना गया। चुनाव के दौरान चर्चा में बने रहने और उसका फायदा उठाने के लिए अपनाया गया यह तरीका हालांकि कारगर तो नहीं रहा, लेकिन चुनाव के दौरान कुछ समय के लिए अन्य पार्टियां बैकफुट पर तो रही हीं। मायावती की बीएसपी को इसका ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा।
इन दिनों आम आदमी पार्टी में भी कुछ इसी तरह का दौर देखने में आ रहा है क्योंकि फिलहाल कोई गंभीर राजनीतिक मिशन जैसे चुनाव आदि सामने नहीं है तो खुद को चर्चा में बनाए रखने के लिए नेता तीन तिकड़म में कूद पड़े हैं। कपिल मिश्रा यथासंभव केजरीवाल पर कीचड़ उछाल रहे हैं। हालांकि इस मामले में वह अपनी ही फजीहत करा रहे हैं लेकिन इससे फर्क ही क्या पड़ता है जब उद्देश्य खुद को चर्चा में बनाए रखने का ही हो।

कुछ सवाल : 
अब देखने वाली बात ये है कि क्या पब्लिक इन नेताओं का फ्री का नाटक देखने के लिए अभिशप्त है? ऐसा क्यों है कि इन नेताओं के पास करने के लिए ऐसे काम नहीं हैं या विजन नहीं है कि वे कुछ ढंग के काम कर सकें? ऐसा क्यों है कि इन नेताओं को यह समझ में नहीं आता कि इनका मानसिक दिवालियापन इन्हें कहीं का नहीं छोड़ने वाला? ऐसा करके ये खुद को पब्लिक की नजर में क्यों गिरा रहे हैं? क्या इन्हें यह महसूस नहीं होता कि ऐसा करके वे अपनी ही जड़ें खोद रहे हैं या अपनी ही पब्लिक लाइफ खत्म कर रहे हैं। कपिल मिश्रा ने जानबूझ कर अपनी टांग कुल्हाड़ी पर क्यों दे मारी, जबकि वे किसी दूसरे पोर्टफोलियो में भी मंत्री पद पा सकते थे?
या
ये नेता मानते हैं कि पब्लिक अब भी मेच्योर नहीं है जो उन्हें खारिज कर देगी? क्या ये मानते हैं कि इनका कीचड़ स्नान पब्लिक को पसंद आता है और कुछ दिनों तक आरोप प्रत्यारोप न सामने आए तो पब्लिक बोर होने लगती है? क्या इन नेताओं को लगता है कि अपनी विचित्र हरकतों से वे खुद को भीड़ से अलग दिखा सकते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकल सकते हैं?

Friday, March 28, 2014

General Elections 2014 : Ground zero Varanasi/Kashi/Banaras


Ancient and cosmic holy city has always been a centre of attraction for the entire the world since ages. Citizens from every part of the world come to explore and learn the lessons of life and truth of life after death here. The city situated on the trident of lord Shiva is blessed and sacred place and so are the people. They are unaffected of the changes of the world and deal a life king size. People here are genetically intellectual and that is why this city is a mine of brilliancy. Before 5th of March 2014 the life of Kashi was no different than before. But on the eve of Holi (16th) when BJP announced his prime ministerial candidate Narendra Modi to contest from Varanasi, this city once again becomes the centre of attraction for the nation. The dent on current governing party UPA and increasing popularity of Modi have excited banarasies as they know that they are going to make history as Prime Minister will be send with the grace of lord Shiva which will bring change and its historic glory back. Since Narendra Modi has done a great job in Gujrat and he is Chief Minister there for three terms, his image have become larger than life. Being a saffron flag bearer of Hindutwa and a nice touch of modernity Modi have no other competitor who can downturn his aspirations. Congress led UPA has no such a leader who can challenge Modi and third front has clashes in itself, Modi's road is all safe. A challenge from newly born and aggressive party Aam Aadmi Party led by social activist and Magsaysay Award winner Arvind Kejriwal can be said of cutting edge. A party just two year old did a stunning job in New Delhi Assembly Election and limited the governing party Congress to just 8 seats. Party won 28 seats, 7 less than majority. Party convenor Arvind Kejriwal beat the then CM Sheila Dixit and become CM. He made Government with the external support of Congress. But as it is said you are always at risk of accident if run too fast. The government run in hue and cry with everyday chaos to 49 days. Everyday AAP government make news with its decisions and statements. On 49th day CM Kejriwal resigned and his party got dent. His image is also become of a

Tuesday, July 2, 2013

फितरत

ये तस्वीर अपने आप ही सब कुछ बयान कर दे रही है. ये तस्वीर इस बात का प्रमाण है की धरती से अब मानवता किताबों कहानियों में जा दुबकी है. वास्तविकता से अब उसका कुछ लेना देना नहीं है. देखिये लोग इस घायल को कैसे देख रहे हैं मानो यह आज का सबसे बड़ा तमाशा यही है. जम्मू के अखनूर में एक स्कूल बस के खाई में गिरने के से घायल हुए लोगों में ये शिक्षिका भी शामिल थी. जम्मू के सरकारी अस्पताल में इस घायल को न तो कोई नर्स मिली न वार्ड बॉय न स्कूल का कोई सदस्य और न आम आदमी ही इसकी मदद को आगे आया. डॉक्टर ड्रिप लगा कर बोतल इस महिला के दूसरे हाथ में थमा गये. आसपास बैठे लोग इस महिला की कराह सुनते हुए इसे बोतल पकडे निहारते रहे. क्या इनमे से किसी को इसकी मदद के लिए आगे नहीं आना चाहिए था. लेकिन एक दूसरे के इन्तजार में सब हाथ बांधे देखते रहे. कुछ तो इसलिए नहीं उठे होंगे की कहीं उनकी कुर्सी पे कोई और न आके बैठ जाये. अब इस शिक्षिका की मनः स्थिति पे गौर करें. शिक्षिका से यही अपेक्षा लोग करते होंगे कि ये बच्चों को मानवता का पाठ पढ़ाएगी लेकिन इस वाकये के बाद क्या ये उसी मनः स्थिति से अपने काम को अंजाम दे पाएगी. शायद नहीं. 

Monday, July 1, 2013

मोदी यानि रहस्य

मोदी की आडवानी के संग ये फोटो इन दिनों जब भी सामने आती है चर्चा जरुर होती है. कुछ न कुछ कयासबाजी शुरू हो जाती है. मोदी के खिलाफ मोर्चेबंदी भी शुरू हो गयी है. येन केन प्रकारेण उनसे सम्बंधित सवाल फिजाओं में तैरते रहते हैं और विरोधियों को उनके जवाब भी देने पड़ते हैं. विरोधियों को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए न होते हुए भी न चाहते हुए भी कुछ न कुछ बोलना ही पड़ता है. मोदी ने जिस तरह राजनीतिक फलक पर उड़ान भरी है उसने विरोधियों को तैयारी का मौका ही नहीं दिया. विरोधियों के बचकाने बयान खुद उनकी पोल खोलते नजर आते हैं. गत दिनों जिस तरह की उठापटक एनडीए में देखने को मिली ये अप्रत्याशित नहीं था. हाँ, तब जरुर होता जब नीतीश ने साथ न छोड़ा होता. हालाँकि नीतीश ने साथ छोड़कर अपरिपक्वता का परिचय दिया है या नहीं ये तो 2014 में सामने आ जाएगा. मोदी ने भाजपा को सख्ती की पटरी पर ला दिया है जहां से सिर्फ ये सन्देश जाता है की प्रशासन डंडे के बल पर ही चलता है. असर देखिये भाजपा में कहीं गुटबाजी नजर ही नहीं आ रही. सब मोदी के रहस्यमयी व्यक्तित्व को समझने में ही व्यस्त हैं. विरोधी तो छोडिये अपनी ही पार्टी के लोग नहीं समझ पा रहे की अगले दिन कौन सा नया फरमान सामने आ जाएगा. मोदी के लिए ये जरुरी है की वो अपने व्यक्तित्व पर रहस्य का पर्दा पड़े रहने दें. उनकी गंभीरता बताती है की वो अपने अन्दर माडल और विजन का समंदर दबा रखा है. अपनी महत्वाकांक्षा के लिए मोदी ने बाजी खेलना शुरू कर दिया है. मोदी और सोनिया में समानता यही है की दोनों ही ज्यादा नहीं खुलते. सोनिया की सफलता से शायद मोदी ने सीख ली है. सोनिया की तरह ही मोदी भी अबतक अपनी साफ़ पाक छवि बनाये हुए हैं. अपने भाषणों में मोदी कभी विचारधारा या वैमनस्यता की बातें नहीं करते बल्कि मुद्दों को उठाते हैं. वो लोगों को अपने अनुभवों से बांधते हैं और लोगों को उनकी बातों में रस मिलने लगता है. गोवा में जब उन्होंने अपनी और मनमोहन के बीच हुई वार्ता का संस्मरण सुनाया तो लोगों को लगा की बहुत दिन बाद कुछ सार्थक सुनने को मिल रहा है. मोदी अपनी यही छवि बनाये रखने में सफल हो गए तो 2014 में भाजपा को अक्फी लाभ हो सकता है. 

Wednesday, June 26, 2013

पहाड़ों पे चौतरफा आफत

पहाड़ों पे आई पहाड़ सी आफत में एक एक साल सरीखे बीत रहे एक एक दिन। जहाँ बचाव दल अपने काम में जुटे हैं वहीँ इस आपदा के पीछे छिपे रहस्य पर भी मंथन चल रहा है. जाहिर है इतनी बड़ी तबाही के बाद कोई नहीं चाहेगा की ऐसा दोबारा कभी हो. गौर करें तो पहाड़ों पे चौतरफा हमला हो चुका है. देवभूमि के गुनाहगारों ने 1991 में उत्तरकाशी में भयानक भूकंप से कोई सीख नहीं ली जिसकी कीमत लोगों को अपनों को खोकर चुकानी पड़ रही है. 
1. लोगों को जो बात बार बार परेशान कर रही है वो उत्तराखंड के विकास से विनाश की तैयार होती पृष्ठभूमि को लेकर है. एक तरफ वैज्ञानिक कह रहे हैं कि विस्फोटक पहाड़ों को कमजोर कर रहे हैं. डायनामाइट और डेटोनेटर उत्तराखंड के कच्चे पहाड़ों को अन्दर से खोखला कर रहे हैं. 2006 से 2011 के बीच उत्तराखंड में 20,632 किलो डायनामाइट पहाड़ तोड़ने में प्रयोग हुआ जबकि 1,71,235 डेटोनेटर लगा कर पहाड़ छलनी कर दिए गये. उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से अतिसंवेदनशील यानि हाई सीस्मिक जोन में आता है. यहाँ 1991 में उत्तरकाशी का भूकंप अब भी लोगों के मन में तारी है. डेटोनेटर और डायनामाइट का प्रयोग इस स्थिति को और बिगाड़ रहा है. 
2. उत्तराखंड में बन रहे बडे बडे बांधों से प्रकृति की नैसर्गिकता ख़त्म हो रही है. श्रीनगर बाँध से एक साल में पांच लाख घन मीटर गाद निकाली जाती है जो नदी मैदानी इलाकों को उर्वर बनाने के लिए बहा के ले जाती थी. उत्तराखंड में 70 बांधों पर काम चल रहा है और हर बाँध से प्रति वर्ष 2 लाख घन मीटर गाद निकलने का अनुमान है. गढ़वाल रीजन में चमोली, उत्तरकाशी, टिहरी, रुद्रप्रयाग व पौड़ी में 31 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इन प्रोजेक्ट से सिर्फ गाद से ही बड़ी मात्रा में विनाश का सामान तैयार हो रहा है. 
3. वनों से भरे उत्तराखंड में पेड़ों की कटाई जोरों पर है. वन माफिया ने भ्रष्टाचार का घुन अफसरों में भर कर यहाँ की हरियाली पर आरी चला दी है. वन ऐसा क्षेत्र है जहां किसी की नजर नहीं जाती और काम चुपके चुपके चलता रहता है. बार बार बादल फटने की घटनाएँ आगाह कर रही हैं कि ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से बादलों की पानी रोकने की क्षमता कम होती जा रही है. बाजारवाद की गिरफ्त में जकड़ी व्यवस्था से जुड़े लोग आपदा के सताए लोगों के दुःख पर घड़ियाल के आंसू बहा कर किनारा कर लेंगे लेकिन ये जिस तरह की व्यवस्था के अंग हो चुके हैं ये कुछ भी कर पाने में असहाय हैं. 
4. पर्यटन को राजस्व का मुख्य स्रोत बनानेवाली राज्य सरकार पर भी कुछ विचार करना समीचीन होगा. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद सड़क निर्माण में तीन गुना की वृद्धि हुई है. राज्य बनने तक इस राज्य में पांच हजार किलोमीटर सड़क थी जो अब 24 हजार किलोमीटर तक जा पहुंची है. नैसर्गिक जगहों का दोहन करने के लिए नए नए होटल व रिजोर्ट बनाये जा रहे हैं. रईसों को यहाँ जमीन भा रही है और इसके लिए वनों की अंधाधुंध कटान की जा रही है. पैसे देने में कोई कोताही नहीं बरतते हुए रईस एक से बढ़ कर एक लोकेशन कब्जे में ले रहे हैं. वीकेंड पे पहाड़ों की तरफ जानेवालों की भीड़ देखिये तो खुद बा खुद समझ आ जाता है कि पहाड़ों की ख़ूबसूरती ख़त्म क्यों हो रही है. 
ये चार कारण पहाड़ों ही नहीं मानव सभ्यता के लिए भारी पड़ रहे हैं जिसकी पहली मार हम खा चुके हैं. 

Saturday, June 22, 2013

प्रकृति दह्लाएगी सुध तभी आयेगी

हिमालयन सुनामी को सात दिन हो चुके हैं. 16 जून से अबतक काफी पानी बह चुका है. धीरे धीरे भयावह तस्वीरें सामने आने लगी हैं. हर दिन चौकाने वाले मामले सामने आ रहे हैं. हादसे की भयावहता बता रही है कि प्रकृति से छेड़छाड़ कितना विनाशकारी हो सकता है. पहले कभी इस तरह का हादसा हुआ हो, ऐसा कभी सुना नहीं गया. 40 हजार से ज्यादा लोग अभी अलग अलग जगहों पे फंसे हुए हैं. सरकार के आंकड़ों को माने तो अबतक 73 हजार लोगों को सुरक्षित जगह पहुँचाया जा चुका है. अलग अलग जगहों से आ रही ख़बरों पे भरोसा करें तो उत्तराखंड की पहाड़ी लाशों से पटी हुई है. वहां से जो सड़ांध बीमारी के साथ फैलेगी उसका अनुमान लगाते मन कांप जा रहा है.
अगर गंभीरता से देखा जाए तो भिन्न भिन्न मंचों से लगातार चेतावनी के बावजूद प्रकृति से छेड़छाड़ बढ़ रही है. पहाड़ों को तोडा जा रहा है, वन क्षेत्र ख़त्म किये जा रहे हैं, टूरिज्म के नाम पे पहाड़ों का दोहन हो रहा है, जंगल साफ़ कर मोटी कमाई के लिए कॉटेज बनाये जा रहे हैं, लकड़ी के लिए वन माफिया अलग चुनौती है. पहाड़ों का इको सिस्टम बिगड़ रहा है. जिसका नतीजा है हिमालयी आपदा. इस मामले की जाँच तो नहीं हो सकती कि बादल फटने के क्या कारण थे लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम परिवर्तन से भला कौन इनकार कर सकता है. तो प्रकृति ने अपने तरीके से चेतावनी दी है कि अगर खिलवाड़ नहीं रुका तो ऐसा ही होगा. ये मानना ही होगा कि प्रकृति और क्रूर हो सकती है. सभ्यता का विनाश भी इसी तरह होता है. 

Friday, June 21, 2013

सहस्राब्दि की आपदा

पहाड़ों की आपदा ने फिर कहीं कुछ हिला कर रख दिया है. कुछ आत्मविश्वास, कुछ आस्था, कुछ निष्ठा और कुछ समर्पण. केदारनाथ धाम में भगवान् शिव की दर पे पड़ी लाशें ये बता रही हैं कि अंधभक्ति से कुछ हासिल नहीं होनेवाला. सर्वशक्तिमान ने जो तय कर दिया वो होना है. इसलिए आप अपना काम करें और ईश्वर को अपना काम करने दें. ईश्वर को ये मंजूर नहीं कि कोई उसकी चाटुकारिता करे. हाँ, ये दीगर है कि उसे भूला न जाये. केदारनाथ का मंदिर अगर बच गया
है तो इसे चमत्कार नहीं माना जाना चाहिए क्योकि ये महज संयोग है कि विशालकाय बोल्डर मंदिर के पीछे किसी तरह बहाव से बच गया और उसने मंदिर को भी बचा लिया. कुछ बातों की ओर गौर करें: पहला - हादसे कि जद में आये चार जिलों में नदियों के किनारे हजारों लोग रहते थे. जिस तरह के दृश्य पिछले चार या पांच दिनों में देखने को मिले हैं उससे मरनेवालों का आंकड़ा हजारों में जाने की आशंका है. इस आपदा से देश की हाईटेक मौसम विभाग की पोल भी खुल गयी है. इतनी बड़ी आपदा की भनक भी न लगना सोचनीय है. मौसम पूर्वानुमान को लेकर बहुत काम करने की जरुरत साफ़ झलकती है.
ट्रेनिंग की भी सख्त जरुरत :  दूसरा - लोगों को अपनी सेहत का भी ध्यान रखने की जरुरत है. ये बात लोगों के मन में स्कूल के दिनों से ही भरनी चाहिए कि शारीरिक मजबूती कितनी जरुरी है. एनसीसी, एनएसएस, स्काउट आदि के जरिये इस तरह की ट्रेनिंग दी जा सकती है कि विपत्ति में कुछ बचाव कर सकें. फिलहाल ये कोर्स महज सर्टिफिकेट पाने का माध्यम होते हैं जो कहीं कहीं दस पांच नम्बरों का वेटेज दिला कर अपना रोल अदा कर देते हैं. सेना जब उल्लेखनीय काम कर रही है तो इसी तर्ज पर एनसीसी, एनएसएस, स्काउट आदि सहयोग क्यों नहीं कर सकते. चीन हो या इसराइल अपने हर नागरिक को फौजी की तरह मानते और प्रशिक्षित करते हैं तो गलत तो नहीं ही करते.