इन दिनों आप महसूस करते होंगे कि देश की राजनीति अब टीवी सीरियल्स की तरह की होने लगी है। कभी समाजवादी पार्टी में बाप-बेटे की कलह एंटरटेनमेंट चैनलों को अवाक और लाजवाब कर देती है तो कभी एक प्रदेश की सरकार के मंत्री को पद से हटाए जाने के बाद परिदृश्य नाटकीय बन जाता है।
राजनीति को एक अजीब सा प्रफेशन कहें तो गलत नहीं होगा। इसमें हर पल कुछ न कुछ नाटकीय होता रहता है। अगर किसी गंभीर मुद्दे जैसे कि चुनाव आदि पर उठापटक न चल रही हो तो हमारे नेता नौटंकी पर उतर आते हैं। लांछन लगाने और कीचड़ उछालने की कला के बगैर तो मानो नेता खुद को साबित ही नहीं कर सकता। आजकल यही हो रहा है- जो जितना कीचड़ उछाल सकता है, अपने साथ साथ दूसरे की छीछालेदर कर सकता है, वही खुद को काबिल नेता साबित कर पा रहा है। यानी राजनीति में कॉम्पिटिशन इस कदर टफ हो चुका है कि नेताओं को हर तरह के काम करने पड़ रहे हैं।
इन दिनों फोटो अपॉरच्युनिटी यानी photo op का दौर चरम पर है। मोदी जी को इसका सूत्रधार कहा जा सकता है। उन्होंने झाड़ू उठाई तो चर्चा में आ गए। फिर उन्होंने फावड़ा उठाया तो मीडिया में छा गए। ऐसा लगा मानो मीडिया के मन को जो भाया, उसकी भनक मोदी जी को लग गई और दोनों का ही काम बन गया। उन्होंने जो राह दिखाई तो नेताओं को यह आइडिया क्लिक कर गया। अब वे भी अनोखे आइडियाज पर काम करने लगे ताकि मीडिया की सुर्खियों में आ सकें। मोदी जी नेताओं पर अपनी चुटकियों से चर्चा में बने रहते हैं और मीडिया को भी 'कुछ नया' के चक्कर में उनसे मसाले की आस रहती है। मोदी जी इस मामले में बेहतरीन मीडिया मैनेजर हैं।
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी परिवार में घमासान सामने आया तो भी वह मीडिया में छाए रहने का एक तरीका ही माना गया। चुनाव के दौरान चर्चा में बने रहने और उसका फायदा उठाने के लिए अपनाया गया यह तरीका हालांकि कारगर तो नहीं रहा, लेकिन चुनाव के दौरान कुछ समय के लिए अन्य पार्टियां बैकफुट पर तो रही हीं। मायावती की बीएसपी को इसका ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा।
इन दिनों आम आदमी पार्टी में भी कुछ इसी तरह का दौर देखने में आ रहा है क्योंकि फिलहाल कोई गंभीर राजनीतिक मिशन जैसे चुनाव आदि सामने नहीं है तो खुद को चर्चा में बनाए रखने के लिए नेता तीन तिकड़म में कूद पड़े हैं। कपिल मिश्रा यथासंभव केजरीवाल पर कीचड़ उछाल रहे हैं। हालांकि इस मामले में वह अपनी ही फजीहत करा रहे हैं लेकिन इससे फर्क ही क्या पड़ता है जब उद्देश्य खुद को चर्चा में बनाए रखने का ही हो।
कुछ सवाल :
अब देखने वाली बात ये है कि क्या पब्लिक इन नेताओं का फ्री का नाटक देखने के लिए अभिशप्त है? ऐसा क्यों है कि इन नेताओं के पास करने के लिए ऐसे काम नहीं हैं या विजन नहीं है कि वे कुछ ढंग के काम कर सकें? ऐसा क्यों है कि इन नेताओं को यह समझ में नहीं आता कि इनका मानसिक दिवालियापन इन्हें कहीं का नहीं छोड़ने वाला? ऐसा करके ये खुद को पब्लिक की नजर में क्यों गिरा रहे हैं? क्या इन्हें यह महसूस नहीं होता कि ऐसा करके वे अपनी ही जड़ें खोद रहे हैं या अपनी ही पब्लिक लाइफ खत्म कर रहे हैं। कपिल मिश्रा ने जानबूझ कर अपनी टांग कुल्हाड़ी पर क्यों दे मारी, जबकि वे किसी दूसरे पोर्टफोलियो में भी मंत्री पद पा सकते थे?
या
ये नेता मानते हैं कि पब्लिक अब भी मेच्योर नहीं है जो उन्हें खारिज कर देगी? क्या ये मानते हैं कि इनका कीचड़ स्नान पब्लिक को पसंद आता है और कुछ दिनों तक आरोप प्रत्यारोप न सामने आए तो पब्लिक बोर होने लगती है? क्या इन नेताओं को लगता है कि अपनी विचित्र हरकतों से वे खुद को भीड़ से अलग दिखा सकते हैं और अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे निकल सकते हैं?