Tuesday, February 22, 2011

अब दिल क्यों नहीं है जी बच्चा
काफी उथल पुथल भरे दिन हैं आजकल। पूरे विश्व में मानो भूकंप सा आ गया हो। मध्य एशिया में क्रांति एशिया में विश्व कप क्रिकेट और नुजीलैंड में असली भूकंप। आखिर क्यों है इतनी उथल पुथल। ये सब एक साथ ही क्यों शुरू हो गया। एक महीने में ही हजारों लोगों की दुनिया उजड़ गयी। क्यों हमेशा आम लोगों को इस्तेमाल किया जाता है। दम तो हितैषी होने का भरा जाता है और पीछे से हिमायती ही छुरा घोपने की फ़िराक में रहते हैं। क्या इसी तरह इस दुनिया का अंत होनेवाला है। हालत तो ये है की अब कोई किसी पे विश्वास ही नहीं करना चाहता। सारे मामले समीकरणों पे आधारित हो गए हैं। आज अगर अमुख व्यक्ति किसी लाभ दिलाने के योग्य नहीं तो उसकी कोई अहमियत नहीं रह गयी है। बाजारवाद किस कदर हावी हो गया है ये इस बात से ही साफ़ हो जाता है की व्यक्ति का हर मूवमेंट किसी न किसी मतलब से तय होने लगा है। क्या किसी को जानने की कसौटी ये ही है की वो कितने काम का है। क्या काम का होना ही दुनिया में सफलता का पैमाना है। शायद येही कारण है की संवेदनशीलता लुप्तप्राय हो गई है। अब कोई किसी का जिगरी दोस्त नहीं है. अब कोई किसी का भाई नहीं है. और अब तो जान देनेवाले दीवाने भी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं। भरोसा हो तो अगली बार आप किसी से मिलें तो उसकी आँखों की भाषा पढियेगा। ये भी सोचियेगा की अंतिम बार आपने अपने दिल की बात किस्से कही थी या दिल की बात कहने की कोशिश की थी। विदा....फिल मिलेंगे।