Sunday, April 18, 2010

दुष्यन्त कुमार---

ये सारा जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,
मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।

यहाँ तक आते-आते सूख जाती है कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
वो सब-के-सब परीशाँ हैं, वहाँ पर क्या हुआ होगा।

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुनकर तो लगता है,
कि इन्सानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा।

कई फ़ाके बिताकर मर गया, जो उसके बारे में,
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं,
ख़ुदा जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा।

चलो, अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें,
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा।



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