Thursday, September 30, 2010

जरा सोचिये... ऐसा क्यों है?

दस साल में पांच गुना बढ़ी केबीसी की इनामी राशि, पर नहीं बढ़ी गरीबों की राहत राशि, क्यों?
वर्ष २००० में कौन बनेगा करोडपति प्रोग्राम शुरू हुआ था, तब इसके विजेता के लिए एक करोड़ रुपये की इनामी राशि रखी गई थी। दस साल बाद केबीसी फिर आ रहा है नए कलेवर में पांच गुनी ज्यादा इनामी रकम के साथ. वहीं गरीबों को दी जाने वाली सरकारी भीख अब भी वहीँ है, जहां वह दस साल पहले थी, यानि करीब ३०० रूपये। ऐसा क्यों? इसलिए क्योंकि गरीबों को बाज़ार से नहीं जोड़ा जा सकता है। काश, गरीब की भी ये बाज़ार सुध ले पाता। मगर लेता कैसे, केवल भारत में ही ३० लाख गरीब ऐसे हैं, जो गरीबी की रेखा के नीचे हैं। ३० लाख लोग ख़बरों की सुर्खियाँ तो बन सकते हैं मगर बाज़ार के लायक नहीं हो सकते। फिर सवाल उठता है की सरकार ने इनका ठेका क्यों लिया है। इसलिए क्योंकि सरकार इन गरीबों का ठेका न लेती तो सरकार का ही इस देश में अस्तित्व न होता, न राजनीति के दलालों का ही भला हो पाता। मजाक देखिये की योजना योग में हाई पॅकेज पर बैठे सरकार के नुमएंदों ने वर्ष २००१ में गरीबों को एक माह तक पेट भरने के लिए ३२८ रुपये तय किये थे। वर्ष २००६ में ये रकम ४० रुपये बढ़ा दी गई। वहीँ कौन बनेगा करोडपति की राशि एक करोड़ से बढ़कर दो करोड़ और फिर पांच करोड़ हो गई। सरकार अगर गरीबों का हित देखती तो कम से कम उन्हें दी जाने वाली आर्थिक सहायता इस समय १५०० रुपये के आसपास होती। मगर क्या ये रकम भी किसी गरीब का पेट भरने के लिए काफी होती। याद रखिये की फ़िलहाल मिलनेवाली ३०० रुपये की राशि सिर्फ और सिर्फ पेट भरने के लिए है। क्योंकि सरकार की नजर में गरीब को न तो कपड़ों की जरूरत है न वह बीमार पड़ता है, जिसके लिए उसे दवा की जरूरत पड़े, न तो उसका परिवार होता है, न उसे एक अदद छत की जरूरत होती है और शिक्षा की तो उसे वास्तव में जरूरत नहीं है। क्योंकि पढ़ लिख लेगा तो जितनी बातें अभी लिखी गई हैं, फिर वह भी सोचने लगेगा। फिर सरकार की पोल उस जैसे नए पढ़े लिखों के आगे भी खुल जाएगी, जो उसे मदद के नाम पर भीख दे रही है।

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