Saturday, March 5, 2011

हाथों में आस्कर, सिर पर छत भी नहीं

आस्कर अवार्ड विनर फिल्म स्लम डॉग मिलिनेयर की बाल कलाकार लतिका याद है आपको। लतिका यानि बारह साल की रुबीना अली की बांद्रा की खोली आग में ख़ाक हो गयी, इसमें उसकी आस्कर अवार्ड की यादें भी राख हो गयी. फिल्म में काम करना रुबीना के लिए कभी ऐतिहासिक था, जो अब त्रासदी बनकर रह गया। इससे बेहतर तो होता अगर वो उन हजारों लोगों की तरह ही रहती, जिनकी खोली आग में ख़ाक हो गयी। कुछ ही घंटों में लगभग दो हजार लोग बेघर हो गए। फिल्म में काम करके रुबीना भले प्रसिद्ध हो गयी लेकिन उसकी लाइफस्टाइल में कोई बदलाव नहीं आया। इससे क्या निष्कर्ष निकाला जाए। सरकार को रुबीना जैसों की फ़िक्र नहीं हो सकती लेकिन फिल्म इंडस्ट्री को भी उसका ख्याल नहीं आया। वह चमकता चेहरा भी नहीं थी की माडल बनकर टीवी में विज्ञापन ही करती और अपने जीवन में कुछ बदलाव लाती। क्या अपना जीवन न बदल पाना रुबीना की हार है। शायद ऐसा ही है। देश में समाज सेवा के नाम पर लाखों एनजीओ काम कर रही हैं, कभी हम राहुल बोस के एनजीओ की चर्चा सुनते हैं तो कभी सलमान के बींग ह्युमन की, लेकिन क्या ये भी पैसा कमाने की मशीनें मात्र नहीं हैं? कुछ दिन पहले एके हंगल की दयनीय हालत के बारे में भी ख़बरें आई तब अमिताभ बच्चन से लेकर तमाम जगहों से उनको आर्थिक मदद मिल पाई थी। ऐसा क्यों होता है की रुबीना या हंगल जैसी प्रतिभाओं को भी हम सहेज नहीं पाते। आखिर सामाजिक सुरक्षा के प्रति हम जागरूक क्यों नहीं हैं। मेरा सवाल है की क्या डैनी ब्वायल टीम मेम्बर रुबीना के लिए कुछ करेंगे। या अनादि काल से इस्तेमाल होते आये गरीब प्रतिभावान ऐसे ही ब्वायल जैसों को ऊपर चढाते रहेंगे और खुद झुग्गी में रहकर कभी भी बेघर हो जाने का खतरा उठाते रहेंगे। डैनी ब्वायल ने बाल कलाकारों के लिए एक ट्रस्ट बनाया था, जिसपर इन बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा था, वो ट्रस्ट क्या कर रहा है। रुबीना को फ्लैट मिलने वाला था लेकिन ऐसा लगता है की आस्कर मिलने के जोश में डैनी ब्वायल ने शायद ये एलान कर दिया था। जोश ठंडा हुआ तो एलान भी ठन्डे बस्ते में चला गया। क्या रुबीना जैसों की ये ही नियति है।

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