Friday, June 21, 2013

सहस्राब्दि की आपदा

पहाड़ों की आपदा ने फिर कहीं कुछ हिला कर रख दिया है. कुछ आत्मविश्वास, कुछ आस्था, कुछ निष्ठा और कुछ समर्पण. केदारनाथ धाम में भगवान् शिव की दर पे पड़ी लाशें ये बता रही हैं कि अंधभक्ति से कुछ हासिल नहीं होनेवाला. सर्वशक्तिमान ने जो तय कर दिया वो होना है. इसलिए आप अपना काम करें और ईश्वर को अपना काम करने दें. ईश्वर को ये मंजूर नहीं कि कोई उसकी चाटुकारिता करे. हाँ, ये दीगर है कि उसे भूला न जाये. केदारनाथ का मंदिर अगर बच गया
है तो इसे चमत्कार नहीं माना जाना चाहिए क्योकि ये महज संयोग है कि विशालकाय बोल्डर मंदिर के पीछे किसी तरह बहाव से बच गया और उसने मंदिर को भी बचा लिया. कुछ बातों की ओर गौर करें: पहला - हादसे कि जद में आये चार जिलों में नदियों के किनारे हजारों लोग रहते थे. जिस तरह के दृश्य पिछले चार या पांच दिनों में देखने को मिले हैं उससे मरनेवालों का आंकड़ा हजारों में जाने की आशंका है. इस आपदा से देश की हाईटेक मौसम विभाग की पोल भी खुल गयी है. इतनी बड़ी आपदा की भनक भी न लगना सोचनीय है. मौसम पूर्वानुमान को लेकर बहुत काम करने की जरुरत साफ़ झलकती है.
ट्रेनिंग की भी सख्त जरुरत :  दूसरा - लोगों को अपनी सेहत का भी ध्यान रखने की जरुरत है. ये बात लोगों के मन में स्कूल के दिनों से ही भरनी चाहिए कि शारीरिक मजबूती कितनी जरुरी है. एनसीसी, एनएसएस, स्काउट आदि के जरिये इस तरह की ट्रेनिंग दी जा सकती है कि विपत्ति में कुछ बचाव कर सकें. फिलहाल ये कोर्स महज सर्टिफिकेट पाने का माध्यम होते हैं जो कहीं कहीं दस पांच नम्बरों का वेटेज दिला कर अपना रोल अदा कर देते हैं. सेना जब उल्लेखनीय काम कर रही है तो इसी तर्ज पर एनसीसी, एनएसएस, स्काउट आदि सहयोग क्यों नहीं कर सकते. चीन हो या इसराइल अपने हर नागरिक को फौजी की तरह मानते और प्रशिक्षित करते हैं तो गलत तो नहीं ही करते.  

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