Saturday, June 22, 2013

प्रकृति दह्लाएगी सुध तभी आयेगी

हिमालयन सुनामी को सात दिन हो चुके हैं. 16 जून से अबतक काफी पानी बह चुका है. धीरे धीरे भयावह तस्वीरें सामने आने लगी हैं. हर दिन चौकाने वाले मामले सामने आ रहे हैं. हादसे की भयावहता बता रही है कि प्रकृति से छेड़छाड़ कितना विनाशकारी हो सकता है. पहले कभी इस तरह का हादसा हुआ हो, ऐसा कभी सुना नहीं गया. 40 हजार से ज्यादा लोग अभी अलग अलग जगहों पे फंसे हुए हैं. सरकार के आंकड़ों को माने तो अबतक 73 हजार लोगों को सुरक्षित जगह पहुँचाया जा चुका है. अलग अलग जगहों से आ रही ख़बरों पे भरोसा करें तो उत्तराखंड की पहाड़ी लाशों से पटी हुई है. वहां से जो सड़ांध बीमारी के साथ फैलेगी उसका अनुमान लगाते मन कांप जा रहा है.
अगर गंभीरता से देखा जाए तो भिन्न भिन्न मंचों से लगातार चेतावनी के बावजूद प्रकृति से छेड़छाड़ बढ़ रही है. पहाड़ों को तोडा जा रहा है, वन क्षेत्र ख़त्म किये जा रहे हैं, टूरिज्म के नाम पे पहाड़ों का दोहन हो रहा है, जंगल साफ़ कर मोटी कमाई के लिए कॉटेज बनाये जा रहे हैं, लकड़ी के लिए वन माफिया अलग चुनौती है. पहाड़ों का इको सिस्टम बिगड़ रहा है. जिसका नतीजा है हिमालयी आपदा. इस मामले की जाँच तो नहीं हो सकती कि बादल फटने के क्या कारण थे लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम परिवर्तन से भला कौन इनकार कर सकता है. तो प्रकृति ने अपने तरीके से चेतावनी दी है कि अगर खिलवाड़ नहीं रुका तो ऐसा ही होगा. ये मानना ही होगा कि प्रकृति और क्रूर हो सकती है. सभ्यता का विनाश भी इसी तरह होता है. 

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